Editorial: पंजाब के रचनात्मक विकास में सत्ता-विपक्ष चलें साथ-साथ
- By Habib --
- Thursday, 02 Nov, 2023
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Government and opposition should work together in the constructive development of Punjab.: पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आप सरकार ने राज्य के मुद्दों पर खुली बहस का आयोजन कर श्रेष्ठ कार्य किया लेकिन इस बहस में केवल सत्ता पक्ष और मुख्यमंत्री की ओर से ही मौजूद रहना विपक्ष की भूमिका पर सवाल खड़े करता है। लंबे समय से राज्य में विपक्ष एसवाईएल समेत अन्य मुद्दों पर बहस की चुनौती और मांग करता आया है, लेकिन अब जब राज्य सरकार ने इसके लिए मंच सजा दिया तो विपक्ष का एक भी नेता कार्यक्रम में नहीं पहुंचा। इसे राजनीतिक पूर्वाग्रह का चरम कहा जाए तो और क्या कहा जाए। विपक्ष का कहना है कि लुधियाना में जिस स्थान पर इस कार्यक्रम को आयोजित किया गया, वहां भारी पुलिस फोर्स की वजह से विपक्ष के कार्यकर्ता या नेता एवं आम नागरिक नहीं पहुंच सका। हालांकि विपक्ष की मांग है कि राज्य के मुद्दों पर विधानसभा में बहस की जाए। वास्तव में विधानसभा सिर्फ बहस के लिए नहीं है, अपितु वहां विधायी कार्य भी संपन्न किए जाते हैं। पंजाब में विधानसभा सत्र के दौरान भी विपक्ष एवं सत्तापक्ष के बीच टकराव साफ नजर आता है, इससे राज्य के संबंध में जरूरी मुद्दों पर चर्चा ही नहीं हो पाती और सत्र यूं ही बीत जाता है। पंजाब वह प्रदेश है, जहां चर्चा और परिचर्चा को खूब मान मिलता रहा है, यह प्रदेश बौद्धिक विचारधारा और कर्म कौशल के लिए जाना जाता है। हालांकि मुख्यमंत्री मान के नेतृत्व में मैं पंजाब बोलदा हां...जैसी खुली बहस में सभी राजनीतिक दलों का एक मंच पर न आना चकित करता है।
सबसे पहले तो यही कि आम आदमी पार्टी के पास इस समय राज्य में बहुमत है। यानी जनता ने उसे निर्णय लेने के लिए अधिसूचित किया हुआ है, इस पर अगर मुख्यमंत्री विपक्ष के नेताओं की मांग पर ऐसी बहस का आयोजन करवा रहे हैं तो इससे दूरी बनाकर विपक्ष जहां सत्तापक्ष को मिले जनमत का अनादर कर रहा है वहीं महज बहस के लिए बहस का आयोजन चाहता है। जबकि अगर विपक्ष के पास कहने को कुछ ठोस है तो उसे चाहे वह सार्वजनिक मंच हो या फिर विधानसभा, सामने आना चाहिए। ऐसे में मुख्यमंत्री भगवंत मान का यह कहना सही प्रतीत हो रहा है कि आम आदमी पार्टी राजनीति करने नहीं अपितु राजनीति सिखाने आई है। यह आरोप अनुचित नहीं है कि पंजाब के साथ अगर ईमानदारी के साथ यहां के नेता पेश आए होते तो आज प्रदेश के हालात ऐसे नहीं होते। बेशक, एसवाईएल के मुद्दे पर इस कार्यक्रम के दौरान पुरजोर तरीके से मुख्यमंत्री ने अपना पक्ष रखा। उन्होंने इसमें विपक्ष के सत्ताधारी दलों की भूमिका पर सवाल उठाए और इस मुद्दे को तूल देने में उनके कथित योगदान के लिए भी उनकी आलोचना की। हालांकि पंजाब के लिए एकमात्र एसवाईएल ही एकमात्र मुद्दा नहीं है, अपितु यहां तमाम सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक, खेल, स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े मामले हैं, जिन पर गंभीर सोच-विचार की जरूरत है। लेकिन राजनीतिक दलों ने इन मुद्दों को आगे से आगे ठेलते जाने में ज्यादा भलाई समझी है और इसी वजह से राज्य को आज यह कहने की जरूरत पड़ रही है कि उसे रंगला पंजाब बनना है। जबकि वह तो पहले से रंगला रहा है।
हालांकि, मुख्यमंत्री भगवंत मान का यह आरोप गंभीर है कि एसवाईएल के लिए कांग्रेस और शिअद की सरकारों ने हरियाणा से करोड़ों रुपये लिए हैं। उन्होंने इस मामले में साल 1966 से लेकर कांग्रेस और शिअद की सरकारों के संबंध में कई दावे किए। उन्होंने इसके संबंध में दस्तावेज भी जाहिर किए हैं। उनका कहना था कि इन नेताओं ने अंदरखाने मिलीभगत की और बाहर एक बूंद पानी न देने के लिए लोगों को उकसाया। बेशक, इस प्रकार के आरोप राजनीतिक कहे जा सकते हैं, लेकिन इतना तय है कि पंजाब के सभी राजनीतिक दलों ने एसवाईएल के पानी के लिए अपने हक की लड़ाई लड़ी है। वैसे, हरियाणा की ओर से भी यही कहा जा रहा है कि उसे अपने हक का पानी चाहिए। यह मामला दो प्रदेशों के बीच का है और इसमें व्यापक हित जुड़े हुए हैं। प्रत्येक राज्य को अपने हित में काम करने का अधिकार है, लेकिन फिर इसका आग्रह भी किया जाता है कि राजनीतिक स्वार्थों को दूूर रखकर व्यापक सोच के साथ काम करना होगा। एसवाईएल सीधे जनता से जुड़ा मामला है, कोई भी राजनीतिक दल इसके विपरीत जाकर काम नहीं कर सकता। ऐसे में राज्य में इस मुद्दे के अलावा और अन्य ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर काम किए जाने की जरूरत है। इन मुद्दों के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सामंजस्य जरूरी है। यह भी आवश्यक है कि सत्तापक्ष, विपक्ष की रचनात्मक भूमिका को साथ ले और विपक्ष भी जनमत का सम्मान करते हुए सरकार के कदमों में उसका साथ दे।
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